वनों की अवैध कटाई धड़ल्ले से हो रही, जिम्मेदार मूकदर्शक बने
अंबिकापुर। शहर में नियम को ताक पर रख कर गैर कानूनी तरीके से आरा मिलों का संचालन किया जा रहा है। इससे सरकारी राजस्व को क्षति तो पहुंच ही रही है, वनों की अवैध कटाई भी धड़ल्ले से की जा रही है। हरे-भरे पेड़ बिना रोक-टोक के काटे जा रहे हैं। हर साल वन विभाग लाखों पेड़ लगाने का दावा करता है, लेकिन काटे गए पेड़ों के ठूंठ देखने की इन्हें फुर्सत नहीं है। एक सप्ताह पूर्व अंबिकापुर में लकड़ी मिल और बगल में ही एक गोदामनुमा मकान से करीब 25 लाख रुपये की अवैध लकड़ी जब्त की गई थी, फिर भी नगर निगम क्षेत्र में धड़ल्ले से अवैध आरा मिल का संचालन सांठगांठ से हो रहा है।
अवैध आरा मिल की संख्या दर्जन भर से अधिक है, इनके संचालकों की नजर जंगल के बेशकीमती हरे-भरे पेड़ों पर रहती है। इसके बाद जंगल से अवैध तरीके से काटे गए हरे पेड़ों पर आरा चल जाता है। सूत्रों की मानें तो बिलासपुर चौक में स्थित चौधरी आरा मिल का संचालन कुटीर उद्योग के रूप में किया जा रहा है, जहांजंगल से काटे गए हरे पेड़ों की चिराई कर विभिन्न तरह के फर्नीचर तैयार किए जाते हैं। तैयार किए गए फर्नीचर को मांग के अनुसार बताए गए स्थान पर तस्करों द्वारा खपा दिया जाता है। विश्वस्त सूत्रों का यह भी कहना है कि कुछ लोग शहर में लकड़ी के फर्नीचर तैयार करने का लाइसेंस ले रखे हैं। इन्हें वन विभाग के द्वारा आरा मिल संचालन की सुविधा दी गई है, इसके आड़ में धड़ल्ले से वन अधिनियम की धज्जियां उड़ाते हुए बड़े आरा मिलों का संचालन हो रहा है। इसका नतीजा है कि प्रतिदिन हजारों हरे पेड़ों की कटाई लकड़ी माफिया कर रहे हंै। बिलासपुर चौक में स्थित चौधरी आरा मिल में भारी मात्रा में प्रतिबंधित प्रजाति के फलदार और औषधि वृक्ष का भी चिरान किया जाता है। यही नहीं मिल के प्रांगण में बिना किसी वैध लाइसेंस के कटर मशीन, बरमा ड्रिल, टेयरिंग मशीन का संचालन किया जा रहा है, जिसमें वन विभाग की भी मौन सहमति है। इतना ही नहीं इस आरा मिल के संचालक द्वारा काष्ठ चिरान अधिनियम 1984 का उल्लंघन किया जा रहा है। मिल में प्रतिबंधित लकड़ियों के आवक-जावक रजिस्टर का कभी संधारण भी नहीं किया जाता है। यही नहीं मिल के प्रांगण में बिना किसी अनुमति के अवैध मशीन का संचालन किया जा रहा है। ऐसे मामलों की खबर ऐसा नहीं है वन विभाग के जिम्मेदारों को नहीं होगी, लेकिन इनके द्वारा भी ऐसे मामलों में हाथ डालने का ईमानदार प्रयास नहीं किया गया है। देखना यह है मामला संज्ञान में आने के बाद वन विभाग क्या उठाता है।
