ग्राम पंचायत कोरिमा के बांसा निवासी ग्रामीण बदहाल जीवन जी रहे
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छ.ग.फ्रंटलाइन अंबिकापुर। सरगुजा संभाग मुख्यालय अंबिकापुर से 10 किलोमीटर के फासले पर स्थित जनपद पंचायत लुंड्रा अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत कोरिमा के आश्रित ग्राम बांसा के ग्रामीण आज भी बदहाल जीवन जी रहे हैं। जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों की अनदेखी का आलम यह है कि ग्रामीणों को बरसात के दिनों में एक सीमित दायरे में सिमटकर रह जाना पड़ता है। गांव में ढाई सौ से अधिक लोगों की बसाहट होने के बाद भी इनके लिए सड़क, पानी जैसी सुविधाएं मयस्सर नहीं हो पाई है। चुनाव के समय इन्हें गांव तक सुविधाओं के विस्तार का सब्जबाग दिखाने वाले बाद में इनकी सुध लेने नहीं पहुंचते हंै। रोजाना खतरों से जूझते इस गांव के बच्चे, बूढ़े, महिलाएं आबादी से दूर ढोढी तक पानी लेने के लिए चक्कर काटते हैं। ढोढी ही मानव व पशुओं की प्यास बुझाने और रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने का एक सहारा है, इस पानी को पीकर बीमार भी पड़ते हैं, लेकिन प्यास बुझाने का इनके पास और कोई विकल्प भी नहीं है। बारिश हो गया गर्मी हर मौसम में इन्हें पानी के लिए मशक्कत करनी पड़ती है।
कलेक्टर से चार हैंडपंप स्वीकृत करने की मांग
मंगलवार को कलेक्टोरेट में होने वाले जनदर्शन में पहुंची रानी दास, मितानिन चम्पा यादव, बिंदु बेक, तिल कुमारी, देवकुमारी दास, अनिता दास, सीमा, राजमती, पुष्पा, मंजू दास सहित अन्य ने कलेक्टर सरगुजा से जनदर्शन में मुलाकात करके उन्हें दिए गए आवेदन में आश्रित गांव बांसा में चार हैंडपंप के लिए स्वीकृति प्रदान करने की गुहार लगाई है। महिलाओं ने नगारची पारा में गोविंद दास के घर के पास, अहीर पारा में चम्पा यादव के घर के पास, कोरवा पारा में बिहानू के घर के पास, मेढार पारा में शंख दास के घर के पास हैंडपंप की स्वीकृति प्रदान करने की मांग की है, ताकि पारा, टोला में निवास करने वाले 266 लोगों को बांध, ढोढी का पानी सहेजने से मुक्ति मिले। इन महिलाओं ने बताया कि गांव में पानी का और कोई साधन नहीं होने के कारण उन्हें रोजाना कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। बच्चे भी इसी ढोढी के पानी में नहाने आते हैं, जहां खतरे की संभावना बनी रहती है।
सड़क मार्ग तक झेलगी में लाते हैं बीमार को
पंचायत का आश्रित गांव होने के बाद भी सड़क की सुविधा नहीं मिल पाई है। अगर किसी बीमार या गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाना हो, तो झेलगी, खाट में ढोकर सड़क मार्ग तक लाना पड़ता है। बारिश के समय तो गांव तक दोपहिया वाहनों का पहुंच पाना मुश्किल है। स्कूल जाने वाले बच्चे हाथ में जूता-मोजा लेकर कीचड़, मिट्टी में सराबोर होते स्कूल पहुंचते हैं। गांव के लोगों को आज पर्यन्त प्रधानमंत्री आवास, हर घर शौचालय निर्माण जैसी योजनाओं का भी लाभ नहीं मिल पाया है। पंचायत के प्रतिनिधियों ने भी उन्हें बदहाल जिंदगी से उबारने के लिए किसी प्रकार की सार्थक पहल नहीं की है।
ढोढी सूखने पर गिलास-लोटा से संग्रहित करते हैं पानी
बांसा ग्राम से पहुंची महिलाओं ने बताया कि ढोढ़ी सूखने के बाद उन्हें पानी के लिए डैम, नाला की ओर रूख करना पड़ता है या फिर ढोढी में बहाव के साथ आने वाले पानी के भरने का इंतजार करना पड़ता है। गिलास, लोटा से पानी सहेजकर वे घर पहुंचते हैं, तब कहीं खाना बन पाता है। बरसात के मौसम में जहरीले जंतुओं का खतरा झेलते उन्हें पानी लाने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है। सड़क नहीं होने के कारण कीचड़, मिट्टी का फिसलन अलग झेलना पड़ता है। पंचायत प्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण आश्रित ग्राम बदतर हालात से उबर नहीं पाया है।ग्राम पंचायत कोरिमा के बांसा निवासी ग्रामीण बदहाल जीवन जी रहे
अंबिकापुर। सरगुजा संभाग मुख्यालय अंबिकापुर से 10 किलोमीटर के फासले पर स्थित जनपद पंचायत लुंड्रा अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत कोरिमा के आश्रित ग्राम बांसा के ग्रामीण आज भी बदहाल जीवन जी रहे हैं। जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों की अनदेखी का आलम यह है कि ग्रामीणों को बरसात के दिनों में एक सीमित दायरे में सिमटकर रह जाना पड़ता है। गांव में ढाई सौ से अधिक लोगों की बसाहट होने के बाद भी इनके लिए सड़क, पानी जैसी सुविधाएं मयस्सर नहीं हो पाई है। चुनाव के समय इन्हें गांव तक सुविधाओं के विस्तार का सब्जबाग दिखाने वाले बाद में इनकी सुध लेने नहीं पहुंचते हंै। रोजाना खतरों से जूझते इस गांव के बच्चे, बूढ़े, महिलाएं आबादी से दूर ढोढी तक पानी लेने के लिए चक्कर काटते हैं। ढोढी ही मानव व पशुओं की प्यास बुझाने और रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने का एक सहारा है, इस पानी को पीकर बीमार भी पड़ते हैं, लेकिन प्यास बुझाने का इनके पास और कोई विकल्प भी नहीं है। बारिश हो गया गर्मी हर मौसम में इन्हें पानी के लिए मशक्कत करनी पड़ती है।
कलेक्टर से चार हैंडपंप स्वीकृत करने की मांग
मंगलवार को कलेक्टोरेट में होने वाले जनदर्शन में पहुंची रानी दास, मितानिन चम्पा यादव, बिंदु बेक, तिल कुमारी, देवकुमारी दास, अनिता दास, सीमा, राजमती, पुष्पा, मंजू दास सहित अन्य ने कलेक्टर सरगुजा से जनदर्शन में मुलाकात करके उन्हें दिए गए आवेदन में आश्रित गांव बांसा में चार हैंडपंप के लिए स्वीकृति प्रदान करने की गुहार लगाई है। महिलाओं ने नगारची पारा में गोविंद दास के घर के पास, अहीर पारा में चम्पा यादव के घर के पास, कोरवा पारा में बिहानू के घर के पास, मेढार पारा में शंख दास के घर के पास हैंडपंप की स्वीकृति प्रदान करने की मांग की है, ताकि पारा, टोला में निवास करने वाले 266 लोगों को बांध, ढोढी का पानी सहेजने से मुक्ति मिले। इन महिलाओं ने बताया कि गांव में पानी का और कोई साधन नहीं होने के कारण उन्हें रोजाना कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। बच्चे भी इसी ढोढी के पानी में नहाने आते हैं, जहां खतरे की संभावना बनी रहती है।
सड़क मार्ग तक झेलगी में लाते हैं बीमार को
पंचायत का आश्रित गांव होने के बाद भी सड़क की सुविधा नहीं मिल पाई है। अगर किसी बीमार या गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाना हो, तो झेलगी, खाट में ढोकर सड़क मार्ग तक लाना पड़ता है। बारिश के समय तो गांव तक दोपहिया वाहनों का पहुंच पाना मुश्किल है। स्कूल जाने वाले बच्चे हाथ में जूता-मोजा लेकर कीचड़, मिट्टी में सराबोर होते स्कूल पहुंचते हैं। गांव के लोगों को आज पर्यन्त प्रधानमंत्री आवास, हर घर शौचालय निर्माण जैसी योजनाओं का भी लाभ नहीं मिल पाया है। पंचायत के प्रतिनिधियों ने भी उन्हें बदहाल जिंदगी से उबारने के लिए किसी प्रकार की सार्थक पहल नहीं की है।
ढोढी सूखने पर गिलास-लोटा से संग्रहित करते हैं पानी
बांसा ग्राम से पहुंची महिलाओं ने बताया कि ढोढ़ी सूखने के बाद उन्हें पानी के लिए डैम, नाला की ओर रूख करना पड़ता है या फिर ढोढी में बहाव के साथ आने वाले पानी के भरने का इंतजार करना पड़ता है। गिलास, लोटा से पानी सहेजकर वे घर पहुंचते हैं, तब कहीं खाना बन पाता है। बरसात के मौसम में जहरीले जंतुओं का खतरा झेलते उन्हें पानी लाने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है। सड़क नहीं होने के कारण कीचड़, मिट्टी का फिसलन अलग झेलना पड़ता है। पंचायत प्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण आश्रित ग्राम बदतर हालात से उबर नहीं पाया है।